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लेह में घुसने से पहले ही कुछ बातो के लिये मन तैयार था कि लेह में जाकर ये करना है । पहला काम तो ये था कि हम आज सुबह सुबह लेह जा रहे थे इसलिये हमें आफिस टाइम में डी सी आफिस में जाकर परमिट बनवा लेना था । आज ना तो छुटटी का दिन था और ना आफिस बंद का समय जो हमें इंतजार करना पडे । दूसरा काम था कि आज लेह में कमरा लेना था और तीसरे काम में काफी छोटे छोटे काम थे जैसे कि पटटी बदलवाना चोट की और हमारा टैंक बैग जो कि बाइक के एक्सीडेंट की वजह से कुछ फट गया था और उसकी चेन भी खराब हो गयी थी उन्हे सही करवाना
इन सब कामो के लिये आज का दिन लग ही जाना था इसलिये आज लेह में रूकना और कल सुबह पेंगोंग के लिये निकलना सही विचार लग रहा था क्येांकि पेंगोंग जाने के लिये भी चांगला दर्रे को पार करना होता है जिसके लिये सुबह का समय उत्तम है । किसी भी दर्रे को पार करने के लिये सुबह का समय उत्तम है क्योंकि कितना भी मौसम खराब हो पर अगर दस बजे तक आप दर्रे को पार करें तो सम्भावना कम ही रहती है कि बर्फबारी मिले । हां एक बात ये भी जरूर है कि सुबह जाने में कभी कभी नुकसान ये रहता है कि अगर पिछली रात को ज्यादा बर्फ पडी हो तो सुबह आपको रास्ता बंद मिल सकता है । खैर इतना सोचने से बढिया है कि बस इतना ध्यान रहे कि लेह में अगर आपको दर्रे को पार करना है तो सुबह निकलना श्रेष्ठ है ।
इस बीच एक काम और भी करना है कि खारदूंगला पर भी जाना है और अगर मन बना तो आगे नुब्रा घाटी भी हो आयेंगे । नुब्रा जाने के लिये सबसे बढिया तरीका है कि आप खारदूंगला या वारी ला में से किसी एक से जाओ और किसी एक से वापिस आओ । नुब्रा से पेंगोंग श्योक के रास्ते भी होकर जा सकते हैं पर वो रास्ता काफी खराब है और गर्मी से पहले या फिर सितम्बर अक्टूबर में ही सही रहता है जब पानी का बहाव कम होता है वहां पर क्योंकि अभी वहां पर सडक सही नही बनी है । इरादे तो बहुत हैं पर देखते हैं कि कितने और कैसे पूरे होते हैं ।
हमने डीसी आफिस को पूछना शुरू कर दिया और सीधे डीसी आफिस में जाकर ही रूके । अभी आफिस में स्टाफ तो आ गया था पर परमिट बनवाने वालो की कोई खास भीड नही थी । तीन बाइक वाले और एक कार वाले वहां पर मौजूद थे हमसे पहले ।जहां पर डीसी आफिस है उसी परिसर में अन्य आफिस भी हैं पर डीसी आफिस गेट से घुसते ही उल्टे हाथ पर है । मै अंदर गया और बांये हाथ पर बैठै सज्जन से पूछा कि परमिट कहां बनता है तो उसने बडे प्यार से बताया कि मै डीसी हूं स्टाफ उधर दूसरी तरफ है वहां पर बात कर लीजिये । ओ तेरे की , और मै दूसरी ओर गया तो वहां पर एक बंदा मिला जिसने मुझसे परमिट के बारे में सुनते ही टेपरिकार्ड की तरह बोलना शुरू कर दिया । वहां पर मौजूद तीन चार लोगो को उसने एक ही बात कही कि पहले आप मुझे सुन लो उसके बाद पूछ लेना जो पूछना हो ।
बकौल उस बंदे के आपको खारदूंगला , नुब्रा ,श्योक , वारी ला , जंस्कार या पेंगोंग किसी भी जगह पर जाने के लिये परमिट बनवाने की जरूरत नही है । नुब्रा घाटी में टुरटुक तक भी परमिट की जरूरत नही है । पेंगोंग झील से आगे मेरक गांव तक भी परमिट नही लगता है । एक सेक्शन है जिसके लिये परमिट की जरूरत है वो है अगर आप पेंगोंग से चुशुल होकर हनले होते हुए निकलना चाहते हो तो इस एरिया के लिये परमिट चाहिये होगा । शी मोरिरी झील और शी कार झील के लिये भी परमिट नही चाहिये होगा । चुशुल से हनले के क्षेत्र के पास ही चुमार पडता है वहां के लिये भी परमिट लगेगा । बाकी सब जगहो के लिये सेल्फ डिक्लेरेशन फार्म लगेगा जहां भी आपसे मांगा जायेगा वहां पर आपको वो फार्म भरकर दे देना है बस । ये फार्म बाहर फोटोस्टेट की दुकान पर मिलेगा । जिसको परमिट चाहिये चुशुल हनले का वो बताईये ।
सारे डाउट सारे सवाल एक झटके में क्लियर । हमें चुशुल से होकर जाना था इसलिये परमिट बनवाना था तो उस बंदे ने बताया कि एक एप्लीकेशन लिखनी होगी कि आपको कितने दिन का परमिट चाहिये अर्थात आप कितने दिन में इस एरिया को पार करेंगें या रहेंगें । बकौल उसके इस रास्ते पर अगर आप चुशुल से सागाला पास को पार करके हनले जाते हैं और हनले से माहे ब्रिज जहां पर परमिट का इलाका खत्म हो जायेगा वहां तक आपको कम से कम दो दिन तो लगते ही हैं । उसके बाद आपके रूकने के उपर है कि हो सकता है कि आप हनले में ही दो दिन रूकें तो ये आपकी इच्छा है । एक एप्लीकेशन लिखकर उसमें तारीख का वर्णन करके और एक फार्म भरकर वहां बैठी एक मैडम को दिया जिसने बताया कि फार्म की एक कापी कराकर ले आओ । मै फोटोस्टेट की दुकान ढूंढने लगा । शुक्र है कि बाइक थी अपने पास वरना पटटी बंधी टांगो से सौ मीटर भी चलना दुश्वार था । डीसी आफिस से बाहर निकलकर सडक पर बांये हाथ से थोडा उपर चढते ही फोटोस्टेट की तीन चार दुकाने हैं । एक कापी करने के पांच रूपये तब पता चला जब मैने दस कापी करायी । एक उस फार्म की और सेल्फ डिक्लेरेशन फार्म की नौ । जहां जहां पर भी चेक पोस्ट मिलनी थी वहां वहां पर ये फार्म जमा कर देना था । अपने डाक्यूमेंटस की फोटोकापी तो हम घर से ही लेकर चले थे । यहां पर मुझे उम्मीद थी कि बाइक के कागज भी साथ में लगेंगें पर ऐसा नही था । केवल हम दोनो के आई डी की कापी साथ में लगवायी गयी और उसके बाद आया फीस जमा करने का नम्बर । फीस तो एक आदमी की केवल 20 रूपये प्रतिदिन ही है और उस हिसाब से हमारे 80 रूपये लगने थे दो दिन के दोनो के पर उनकी कुछ और फीस भी हैं जो कि फिक्स हैं यानि आदमी कितने भी हों एक परमिट पर उतनी ही फीस लगनी हैं इसमें रेडक्रास , पर्यावरण आदि के नाम पर 600 रूपये लिये जाते हैं ।
कुल मिलाकर 680 रूपये फीस लगी दो दिन की । उसके बाद मैडम ने बताया कि डीसी साहब अभी नही हैं जब वो आयेंगेंं तब साइन होंगें । वही डीसी साहब जो आते ही मिले थे अब गायब थे । मैने मैडम से पूछा कि कब आयेंगें तो उन्होेने कहा कि समय तो पता नही पर अगर आपको ज्यादा जल्दी है तो आप बराबर की बिल्डिंग में बैठे एक अन्य अधिकारी से साइन करवा लीजिये । मैने उनसे फार्म लिया और गेट के सामने मौजूद मुख्य बिल्डिंग में पहली मंजिल पर बैठै दूसरे जो कि उनके समकक्ष थे उनके पास गया और उन्होने आराम से बिना कुछ पूछे साइन कर दिये । मैडम ने मुझे फार्म पर साइन देखकर रसीद दी और फार्म पर स्टाम्प लगाकर परमिट पूरा कर दिया ।
आज के दिन सबसे पहले हमारा परमिट बना था और ये इतनी लम्बी प्रक्रिया मैने यहां इसलिये लिखी है कि इसी तरीके से परमिट बनेगा सो जिसको जरूरत हो वो इसे पढकर आराम से इस काम को कर सकता है इसमें कोई हडबडी की जरूरत नही ना किसी होटल वाले या दलाल की । अगर डीसी वहां पर होते और मै इस फार्म को पहले से डाउनलोड करके ले गया होता तो दस मिनट भी नही लगते शायद । मै तो सोच रहा था कि हमें दिल्ली से आते हुए बाइकरो का पूरा गैंग मिलेगा सुबह सुबह यहां पर लेकिन ऐसा नही हुआ । अब हम लेह के मुख्य बाजार में पहुंच गये । हमने आज एक तो उठने चलने में देरी की और उसके बाद हम बडे आराम से घूमते घूमते लेह तक आये इसलिये 10 बजे के करीब हम लेह में आये थे । साढे दस तक हमारा परमिट बन गया था और उसके बाद हम कमरा ढूंढने लगे । इसी बीच हमें कल वाले बाइकर दिखे जो कि कपडो की दुकान पर कपडे खरीद रहे थे । उनके पास पहुंचे बातचीत हुई तो पता लगा कि वे खारदूंगला गये थे पर वो रात हुई बर्फबारी जो कि अब फिर से हो रही है उसकी वजह से बंद है । वे वापस आ गये हैं और साउथ पुल्लु तक उन्हे ठंड से जो परेशानी हुई उसके लिये कपडे खरीद रहे हैं । हमारी विंडशीटर फट चुकी थी दोनो की जो कि जैकेट के उपर पानी और हवा से एक्सट्रा बचाव देती है तो हमने भी कपडे देखने शुरू कर दिये ।
मिश्रा जी ने दो जैकेट और एक लोअर और मैने एक जैकेट और एक लोअर खरीद लिया और हम बाइक मिस्त्री की दुकान ढूंढने लगे । मेरे मन में था कि कमरा तो हम ले ही लेंगें पर बाकी काम निपटा लेते हैं पहले । पैट्रोल पम्प से पहली गली में मेन रोड के पास ही बाइक वाले की दुकान थी । मिस्त्री ने देखा तो बोला कि थोडा मोबिल आयल कम है और क्लच प्लेट डाउन है आप खारदूंगला पर परेशान भी हो सकते हो । मैने उससे पूछा कि कितनी देर में ये बदल दोगे तो उसने आधा घंटा बताया । बाइक खडी कर दी गयी और उसने अपन काम तेजी से शुरू कर दिया । उसने ये भी बोला कि मै इसकी ऐसी सैंटिंग कर दूंगा कि आपकी बाइक किसी भी पहाड पर तेजी से चढ जायेगी । क्लच प्लेट बदलने के बाद उसने बाइक हमें दे दी और इसके बाद हमने पहले तो बराबर की एक दुकान पर समोसे खाये और फिर चेन सही कराने वाली दुकान ढूंढने लगे । इसी बीच मेरे मन में विचार आया कि खारदूगला अभी चलकर देखना सही रहेगा ।
क्योंकि उन बाइकर ग्रुप ने बताया था कि तीन बजे के आसपास खुल भी सकता है तो अगर हम आज पार कर लें तो हमारे पास टैंट है रूकने की कोई समस्या नही होगी और हम कल नुब्रा से होकर वापिस आ जायेंगें । अगर खारदूंगला तक ही जा पाये तो वहां से आज आकर कमरा ले लेंगें । पर अगर हमने कल सुबह ट्राई किया और आज रात को भी बर्फबारी हुई तो कल सुबह फिर से बंद मिलना ही है और इसकी संभावना सबसे ज्यादा है इसलिये अभी जाना ठीक रहेगा । मिश्रा जी से थोडी बहस , थोडा विचार विमर्श के बाद ये तय हुआ कि जैसी स्थिति पिछले दो तीन दिन से चल रही है उसमें सुबह सवेरे तो रोज बंद ही रहता है खारदूंगला रात की बर्फबारी की वजह से तो हमें अब देखना चाहिये चलकर और अगर अब हम पार नही कर पाये तो कल सुबह हम पेंगोंग के लिये निकलेंगें ।
दो बजे के करीब हम खारदूंगला के लिये चल दिये । नयी क्लच प्लेट डलने का असर दिख रहा था । चलने से पहले हमने पैट्रोल की टंकी फुल करा ली क्योंकि अगर हम नुब्रा जायेंगें तो दिक्कत होगी । यहां के जिस पम्प पर हमने पैट्रोल डलाया वहां पर केवल महिलाये ही सब काम कर रही थी । लेह जैसे शहर में ये देखकर सुखद अनुभूति हुई । खारदूंगला का रास्ता मुख्य बाजार से सीधे हाथ को मुडता है और फिर लगातार चढाई शुरू हो जाती है । जैसे जैसे उपर की ओर चढना शुरू करते हैं वैसे वैसे लेह शहर का सुंदर नजारा दिखना शुरू हो जाता है । शांति स्तूप से लेकर पूरे लेह शहर का और एक बार को तो सामने का मौसम थोडी देर के लिये साफ हुआ तो सामने की ओर बर्फ से ढके पहाडो की श्रंखला नजर आने लगी । खारदूंगला करीब 40 किलोमीटर है और उससे पहले साउथ पुल्लू नाम की जगह आती है जहां पर चेक पोस्ट है पर उससे भी थोडा पहले एक और लकडी का खोखा था जिस पर बैरियर लगा था । वहां पर एक बंदे ने पूछा गाडी के कागज किसके नाम हैं और सिर्फ बताने से ही उसने आगे जाने दिया हमने कागज नही दिखाये ।
साउथ पुल्लू से 5 किलोमीटर पहले तक रास्ते में कोई दिक्कत नही था ना कोई बर्फ का निशान था पर करीब 20 से ज्यादा बाइकर वापिस आते मिले । पूछने पर बताया कि आज खुलने का कोई चांस नही है और साउथ पुल्लू से आगे कोई नही जा पा रहा । इसी बीच आर्मी के दो ट्रक आते दिखे और हमें उपर की ओर जाते देखकर उसमें बैठै जवानो ने भी हाथ हिलाकर मना कर दिया कि उपर मत जाओ बंद है । अब इससे आगे हम चले भी जाते तो क्या करते क्येांकि इतने सब लोग झूठ तो बोल नही रहे और फाइनल हमने तब कर दिया जब सुबह मिले बंदे भी वापस आते मिले और उन्होने बताया कि दूसरा प्रयास भी असफल रहा और अब वे वापस जा रहे हैं । इसके बाद हमने भी बाइक वापस मोड ली । आधे घंटे में हम वहां तक पहुंच गये थे और उसके बाद हम आधे घंटे में आराम से फोटो खिंचवाते हुए नीचे लेह में आ गये । खारदूंगला नही कर पाये जिसका अफसोस नही है क्योंकि ये अगली बार जाने का बहाना है ।
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